प्रातः की बेला
प्रातः की बेला
आधार छंद-- गीतिका छंद सममात्रिक
यति -14,12
परिचय-- अवतारी 26 मात्रा, वर्ग भेद (196,418)
पदांत-- 12
प्रात की बेला सुहानी, छोड़ आलस जग रहे।
देख सब जागे सवेरे, भोर बिस्तर तज रहे।।
सूर्य की किरणें सुनहरी, लालिमा फैला रही।
चाँद - तारों को समेटे, रात भी अब जा रही।।
कुछ परिंदे हैं गगन पर, गीत गाते उड़ रहे।
हैं सुमन सारे धरा पर, मुस्कुराते खिल रहे।।
हलधरों ने शस्य फल के, बीज देखो बो दिए।
पनघटों पर गोरियों ने, घट अभी से भर लिए।।
त्याग कर आमाद सारा, चल - चलें अब काम पर।
भोर की बेला मधुर में, अब नहीं आराम कर।।
कर परिश्रम जी लगाकर, काम सब होते रहें।
दम लगाए होंसला तो, नाम पाते ही रहें।।
आभार - नवीन पहल - ०२.०४.२०२४🙏🏻🙏🏻
# दैनिक प्रतियोगिता हेतु कविता
Mohammed urooj khan
16-Apr-2024 12:36 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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HARSHADA GOSAVI
03-Apr-2024 10:50 AM
Amazing
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Gunjan Kamal
03-Apr-2024 09:10 AM
शानदार प्रस्तुति
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